[ad_1]
ओटीटी की दुनिया, धीरे-धीरे जिस तरह से ग्रो हो रही है, मुझे ख़ुशी है कि यहाँ अब मेकर्स ने समझना शुरू किया है कि केवल क्राइम, एक्शन और थ्रिलर सीरीज ही दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए काफी नहीं है, कुछ फील गुड कहानियां कहनी भी जरूरी है, जिसमें कोई ताम-झाम न हो। गुल्लक के बाद, एक ऐसी ही सीरीज ने मेरा ध्यान आकर्षित किया है, जिसका नाम होम शान्ति । देहरादून में रहने वाले जोशी परिवार की मिडिल क्लास कहानी है, जिसका एक सपना है कि अपने एक मकान हो, जहां सभी अपने-अपने हिस्से की जिंदगी एन्जॉय कर सकें, एक सरकारी नौकरी करने वाले के लिए यह सपना देखना और फिर जमीन लेकर उस पर अपने सपनों का बँगला बनाना इतना भी आसान नहीं है, इसी जद्दोजहद की कहानी को खूबसूरती से इस सीरीज में दर्शाया गया है। सुप्रिया पाठक और मनोज पाहवा जैसे दिग्गज कलाकारों ने इस सीरीज को फील गुड बना दिया है। मैं यहाँ विस्तार से बताने जा रही हूँ कि कहानी में मुझे क्या बातें आकर्षित कर गयीं।
कहानी देहरादून में रहने वाले एक मिडिल क्लास परिवार की है। जोशी परिवार। सरला जोशी ( सुप्रिया पाठक), वह एक सरकारी नौकरी में हैं, एक-एक करके वह अपनी सैलरी बचा कर, एक प्लॉट ख़रीदा है। उमेश जोशी ( मनोज पाहवा ) कवि हैं, क्रिकेट और कविता में ही इनका दिन बीतता है। इनके दो बच्चे हैं, जिज्ञासा ( चकोरी) और नमन (पूजन छाबरा) सबकी अपनी-अपनी दुनिया है। जोशी परिवार प्लॉट तो ले लेता है, लेकिन प्लॉट से घर बनाने तक का सफर आसान नहीं रहता है। क्या जोशी परिवार का वह सपना हो पाता है, मिडिल क्लास की एक ऐसी ही फील गुड कहानी है ये।
लेखक ने मिडिल क्लास की न्युएंसेस को अच्छी तरह से पकड़ा है। कहानी में मेलो ड्रामा नहीं है और जबरन के किरदार नहीं ठूंसे गए हैं, लम्बे समय के बाद किसी सीरीज में पड़ोसियों को शामिल किया गया है, वरना आज कल सिनेमा के समाज से पड़ोस और पड़ोसी गायब हो रहे हैं, जबकि हमारी जिंदगी का यह अहम हिस्सा हैं। मिडिल क्लास के सपने और एक घर बनाने में किस तरह पूरी जिंदगी निकल जाती है, उन चैलेन्ज को अच्छे से दर्शाया गया है। कहानी में बनावटीपन नहीं है। कहानी का क्लाइमेक्स मजेदार नोट पर छोड़ा गया है, ताकि अगले सीजन का इंतजार रहे। कई नॉस्टेलिजिक चीजें भी शामिल की गई हैं, जो पुरानी जिंदगी से कनेक्ट करती है। इस सीरीज में महिला किरदारों को स्ट्रांग दिखाया गया है, अमूमन मिडिल क्लास कहानियों में मुखिया पुरुष होता है, लेकिन यहाँ महिला किरदारों को अहमियत दिया जाना आकर्षित करता है। कहानी के नैरेटिव में कविताओं के तार जोड़े गए हैं, यह नैरेटिव को दिलचस्प बनाते हैं।
इस सीरीज के कास्टिंग निर्देशक की तारीफ़ होनी चाहिए कि उन्होंने एक स्वाभाविक कहानी के लिए, वैसे ही किरदार चुने हैं। सुप्रिया पाठक और मनोज पाहवा जैसे कलाकार तो हर किरदार में ढल ही जाते हैं। चकोरी और पूजन ने भी अच्छा अभिनय किया है, वह पर्दे पर फ्रेश दिखे हैं, दोनों में ही काफी संभावना भी नजर आ रही है मुझे।
कहानी के बिल्ड अप में निर्देशक ने ज्यादा समय ले लिया है, ऐसे में कई बार देखते हुए, मैं रुचि खो दे रही थी, लेकिन फिर आगे के हिस्से में वह रोचक पहलू नजर आ रहा था। इसमें निर्देशक और बेहतर कर सकती थीं।
कुल मिला कर, यह सीरीज एक फील गुड सीरीज है, जिसे पूरे परिवार के साथ बैठ कर एन्जॉय किया जा सकता है, मुझे तो इसे देखते हुए कई बार ये जो है जिंदगी जैसे धारवाहिकों की याद आयी, मेरा मानना है कि ऐसी सीरीज का बनते रहना जरूरी है, ताकि मनोरंजन की दुनिया के बहाने ही, परिवार एक साथ तो बैठें।
Hello, fellow sports enthusiasts and inquisitive minds! Have you ever found yourself puzzled by the…
Understanding IPTV: Next‑Gen Television IPTV, or Internet Protocol Television, represents the future of TV, delivering…
Online sports betting has become a popular pastime for many, offering lots of excitement and…
Introduction to Pishbini Betting Forecasts Pishbini Betting Forecasts have steadily gained attention in the betting…
High 5 Casino has carved a niche for itself by offering a rich variety of…
Introduction Viagra is more than a household name; it is a revolutionary medication that reshaped…